करमा पर्व झारखंड के आदिवासी मूलवासियों का प्रचलित लोकपर्व

यह त्यौहार मुख्य रूप से भादो( सितंबर)मास के एकादशी के दिन और कुछेक स्थानों पर उसी के आस-पास मनाया जाता है,इस मौके पर लोग प्रकृति की पूजा कर अच्छे फसल की कामना करते हैं। यह दिन इनके लिए प्रकृति की पूजा है। ऐसे में सभी लोग उल्लास से भरे होते हैं।परंपरा के मुताबिक ,खेतों में बोई गई फसल बर्बाद न हो, इसलिए प्रकृति की पूजा की जाती है।

बहन-भाई के बीच रिश्तों को दर्शाता है यह पर्व।
 भादो महीना शुरू होते ही भाई अपने नवविवाहिता बहन को ससुराल से विदा कराकर ले आता है।कुंवारी बहने सात दिन पहले'करम जावा'उठाती है।इसमें सात प्रकार के अनाज मिलाकर नई टोकरी में बालू भरकर उसे बोती है।हर शाम उसे हल्दी पानी से सींचती है,सातवें दिन उसमे सुनहरे पौधे निकल आते हैं।यही करम जावा है।

करम के दिन भाई-बहन दोनों उपवास करते हैं।भाई करम की डाली काटने ढोल-मांदर के साथ गांव के लोग जंगल की ओर जाते हैं,करम पेड़ की पूजा करते हैं और फिर तीन डालियां काटते हैं।इसके बाद ढोल-नगाड़ों के साथ करम डाल को गांव में लाकर सबसे पहले घर की छत पर रखा जाता है,इसके बाद विधिवत पूजा करते हुए तीनों डालियों को आखाड़ा में गाड़ते हैं।उपवास की हुई बहने पूजा की थाली लेकर आती हैं, जिसमें

कई तरह के पकवान होते हैं।सारी रात गांव के लोग करम को घेरकर नाचते गाते हैं,जिसे करमा नृत्य कहा जाता है।अगले दिन करम की डाल को सबके घर में घूमाने के बाद उसे नदी में विसर्जीत किया जाता है।
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Milan Tomic

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