बोसॉन,परमाणु में अब तक ज्ञात सबसे छोटे कण है,परमाणु की बनावट में nucleus के अंदर प्रोटॉन तक पहुंच कर भी साइंटिस्ट दुनिया की बनावट को समझने की प्रक्रिया में एक खास कण का आभास हुआ जिसे बोसॉन नाम दिया गया।
हिंग्स को खोज के लिए मिला नोबल-वर्ष 1965 में पीटर हिंग्स ने बोसॉन या गॉड पार्टिकल का आईडिया पेश किया, जिसमे उन्होंने बताया कि गॉड पार्टिकल वह कण है।जो मैटर को (मास) प्रदान करता है उनकी थ्योरी में हिंग्स बोसॉन ऐसा मूल कण था,जिसका एक फील्ड था जो यूनिवर्स में हर कही मौजूद था।जब कोई दूसरा कण इस फील्ड से गुजरता तो रेसिस्टेंस या रुकावट का सामना करता जैसे कोई भी चीज़ हवा या पानी से गुजरते हुए करती है ,जितना ज्यादा रेसिस्टेंट उतना ज्यादा मास।स्टैंडर्ड मॉडल हिंग्स बोसॉन से मजबूत होता जा रहा था, लेकिन उसके होने का एक्सपेरिमेंटल सबूत चाहिए था।बाद में हुए प्रयोग के जरिये हिंग्स ने यह कण पाया था।
सर्न में हुआ था पूरा रिसर्च- यूरोपीयन आर्गेनाईजेशन फ़ॉर नुक्लेअर रिसर्च (सर्न) के जेनेवा स्तिथ फिजिक्स रिसर्च सेंटर के साइंटिस्ट के मुताबिक गॉड पार्टिकल का पता तब चला, जब एटलस और सीएमएस प्रयोग से जुड़े साइंटिस्ट ने लार्ज हेड्रॉन कॉलाइडर को तेज स्पीड में चलाकर कई कणो को आपस में टकराए।
हिंग्स को खोज के लिए मिला नोबल-वर्ष 1965 में पीटर हिंग्स ने बोसॉन या गॉड पार्टिकल का आईडिया पेश किया, जिसमे उन्होंने बताया कि गॉड पार्टिकल वह कण है।जो मैटर को (मास) प्रदान करता है उनकी थ्योरी में हिंग्स बोसॉन ऐसा मूल कण था,जिसका एक फील्ड था जो यूनिवर्स में हर कही मौजूद था।जब कोई दूसरा कण इस फील्ड से गुजरता तो रेसिस्टेंस या रुकावट का सामना करता जैसे कोई भी चीज़ हवा या पानी से गुजरते हुए करती है ,जितना ज्यादा रेसिस्टेंट उतना ज्यादा मास।स्टैंडर्ड मॉडल हिंग्स बोसॉन से मजबूत होता जा रहा था, लेकिन उसके होने का एक्सपेरिमेंटल सबूत चाहिए था।बाद में हुए प्रयोग के जरिये हिंग्स ने यह कण पाया था।
सर्न में हुआ था पूरा रिसर्च- यूरोपीयन आर्गेनाईजेशन फ़ॉर नुक्लेअर रिसर्च (सर्न) के जेनेवा स्तिथ फिजिक्स रिसर्च सेंटर के साइंटिस्ट के मुताबिक गॉड पार्टिकल का पता तब चला, जब एटलस और सीएमएस प्रयोग से जुड़े साइंटिस्ट ने लार्ज हेड्रॉन कॉलाइडर को तेज स्पीड में चलाकर कई कणो को आपस में टकराए।
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