प्रतियोगिता आज की जीवनशैली का अनिवार्य हिस्सा बन चुकी है।चाहे आप विद्यार्थी ,मैनेजर ,इंजीनियर ,डॉक्टर, बैंकर, निर्माता या विक्रेता ही क्यों न हो।हर छेत्र मे प्रतियोगिता है।इसी कारण हमें quality मिल पाती है ।चाहे श्रेष्ठ खिलाड़ी की हो,डॉक्टर की, शिक्षक या विविन्न उत्पाद की जैसे tv ,फ्रीज या मोबाइल इत्यादि। लेकिन आज के भौतिकवादी युग मे मानवीय मूल्य लुप्त होने के कगार पर है, इंसान ने प्रतियोगिता का अर्थ'येन क्रेन प्रकारेण' आपना काम निकलना समझ लिया है। इसे किसी भी मायने मे सही नही ठहराया जा सकता है।वास्तव में सही प्रतियोगिता वही होता है ,जिसमे जीवन मूल्य हो ,आत्मसम्मान एवं आत्मसंतुष्टि हो।
दूसरे शब्दों में कहे तो वो पूर्णत सकरात्मक हो।सकरात्मक प्रतियोगिता का अर्थ नियमों एवं सिद्धान्तों से समझौता किये बगैर आपने प्रतिद्वंद्वी से स्वयं को श्रेष्ठ साबित करना होता है।
'एक महान विचारक ने कहा है, 'सकरात्मक प्रतियोगिता दूसरों के बनाई लकीर को छोटा करना नहीं ,बल्कि उन लकीरों के समानांतर एक बड़ी लकीर खींचना होता है।
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